रात के सन्नाटे को चीरती हुई खामोशी आज ख्वाबों से कुछ कहना चाहती थी । प्रेमचंद के उपन्यासों को समझे हुए मन और समय के संग चल रहे मन में मानो कोई द्वंद हो रहा हो। मैंने झकझोरते हुए खुद को ख्यालों से आजाद किया । मगर गरीबी की जो रेखा खींची थी मेरे मन पर उसे मिटाना आसान नहीं था । बार-बार एक ही ख्याल लंबी सङके अपने अनंत होने के गुमान में चूर थी और उसपे चलने वालो के हौसले प्रेमचंद से शायद मेल खाते थे । कोई प्रेमी भी इश्क में इस कदर ना बर्बाद हुआ होगा जैसे इस महामारी ने हौसलों को परास्त किया था । मेरे मन में रह-रह कर हूक उठती थी ।कुछ कहना था किसी से और कह ही ना सकी थी । खैर रात का तिलिस्म ही कुछ ऐसा होता है जब मन के जज्बात नहीं सो पाते हैं । तिस पर से lockdown के बढने की खबर ने और बेचैनी बढा दी । जो सोचा था वो तो हुआ नहीं और जिंदगी मानो बोझ बनकर पैर पसारे ही चली जा रही है । दिन गुजर रहे थे वक्त बीत रहा था मगर मुझे ये बीतता हुआ वक्त नहीं चाहिए था । उस रोज से खुद की फिक्र होने लगी । हाय क्या सचमुच में मैं खुद को नहीं समझती या बस नजरअंदाज करती आ रही हूँ । जो मैं हूँ,मेरे सपने है,मेरी सोच है वास्तव में कितने मेरे है ।
मैंने निश्चय किया क्यों ना खुद से जान पहचान की जाए।
तब सवाल उठा कितना जाना जाए? मुझे अपनी पसंद,नापसंद मालूम है,कब गुस्सा आता है,कब खुशी मिलती है,जीवन का aim क्या है मेरी strategies क्या है और किनके साथ comfortable हूँ भी मालूम है । तो फिर क्या जानना बाकी रह गया और क्यों । क्या ये अच्छा नहीं जैसे चल रही है जिंदगी चलने दू । क्या पता कोई अतीत का जख्म निकल जाए । खुद को जानना शायद नासूर कुरेदने जैसा ना हो जाये ।
लेकिन ये नासूर अगर वक्त रहते ना कटा तो असहाय हो जाएगा । फिर भी मेरी नजर में कुछ ऐसा नहीं था जो समझना बाकी रह गया हो । हाँ बेबाकी से अपनी बात रखने वाली आदत ने उदंड होने का ठप्पा जरूर लगा दिया था ।मगर मैं भी जिद्दी थी जहाँ बात अटपटी लगी उठ खङी हुई ।फिर चाहे सामने अपने हो या पराये ।खैर इसके किस्से इतने है कि फिर ना मुझे खुद को जानने का समय मिलेगा ना आपसे बात करने का,और कहीं आप टूट ही ना जाओ।इसलिए ना जानना ही अच्छा है ।
The story will be continued…. but it is really important for all of us to know ourselves
What we want,how we think and who we are ??
Keep reading this स्वयं की तलाश में 👣